शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

नुकसान...संजय रांका

कई बार लोग यंत्रवत उदारता दिखाते हैं 
और अचानक उनकी 
ओढ़ी हुई शालीनता से परदा उठ जाता है

वयोवृद्ध पिताजी उपचार से ठीक होकर घर आकर आज बेहद खुश थे. बार-बार उनके दिमाग में एक ही बात आ रही थी कि बचपल में मरणासन्न अवस्था में पहुच चुके बेटे को बचोने के लिए उन्होंने जी-जान एक कर दी थी, आज उसी बेटे ने करोड़ो के टर्न ओव्हर वाले बिजिनेस को छोड़कर लगातार आठ दिनों तक अस्पताल में रहकर उनकी सेवा की.

यह बात वे हर उस व्यक्ति को बड़े खुश होकर बता रहे थे जो उनका हालचाल जानने आ रहा था. हालचाल जानने का सिलसिला जब खत्म हुआ जो एक दिन पिता जी ने बेटे को बुलाकर खुशनुमा अंदाज में उसके हाथ में पचास हजार रुपए रख दिए.

बेटे ने पूछा पिता जी यह किसलिए?

पिताजी नें कहा बेटा मेरे इलाज का खर्च इतना तो हुआ ही होगा ?

उसके बाद बेटे ने जो कुछ कहा उसे सुनकर पिताजी को ऐसा लगा जैसे वे वैसी ही अवस्था मे पहुंच जैसी अवस्था किसी समय उनके बेटे की हो गई थी

बेटे ने कहा था..पिताजी मेरी दुकान आठ दिनों तक बन्द रही थी. उसका क्या?
-संजय रांका

3 टिप्‍पणियां:

  1. काफी से अधिक दरियादिली दिखा दी पिताजी ने
    अब भुगतो..
    सादर

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  2. दुनिया,रिश्ते,ज़िन्दगी सब तिजारत है यारों,
    छोडो, चलो, आओ, बैठें इश्क करें.
    ---- राहत इन्दौरी

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  3. बहुत मार्मिक और संवेदनशील प्रसंग।

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