गुरुवार, 16 जनवरी 2014

बरसों बाद उसी सूने-आँगन में...........धर्मवीर भारती

बरसों बाद उसी सूने-आँगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना
रिसती-सी यादों में पिरा-पिरा उठना
मन का कोना-कोना


कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना
फिर आकर बाहों में खो जाना
अकस्मात मंडप के गीतों की लहरी
फिर सन्नाटा हो जाना
दो गाढ़ी मेंहदी वाले हाथों का जुड़ना
कंपना, बेबस हो गिर जाना

रिसती-सी यादों में पिरा-पिरा उठना
मन का कोना-कोना
बरसों बाद उसी सूने-आँगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना


-धर्मवीर भारती
मधुरिमा, बुधवार,15, जनवरी.2014

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